Thursday, 22 July 2021

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माचिस संग्रहण यात्रा पार्ट 6 

जय हिन्द, खेल थीम पर हमारे यहां काफी माचिस प्रचलित हैं,  उस में से ओलंपिक थीम पर भी बहुत सी माचिस बनी हैं, आज वो ही दिखा रहा हुं, कुछ जानकारी के साथ:
ओलंपिक, आज से शुरू हो रहे हैं, शुक्रवार, 23 जुलाई, 2021 से सेामवार, 8 अगस्त, 2021 तक टोक्यो में
कुछ भारतीय माचिस, जो मेरे संग्रह में है आपके साथ शेयर कर रहा हूं।
टोक्यो ओलंपिक 2020 का प्रतीक चिन्ह 
 विविधता में एकता

आयताकार आकृतियों की तीन किस्मों से बना, डिजाइन विभिन्न देशों, संस्कृतियों और सोचने के तरीकों का प्रतिनिधित्व करता है। यह इस तथ्य को भी व्यक्त करता है कि ओलंपिक और पैरालंपिक खेल दुनिया को जोड़ने के लिए एक मंच के रूप में विविधता को बढ़ावा देना चाहते हैं।

ओलंपिक खेलों की स्थापना खेल, एकता और प्रतिस्पर्धा 
और शारीरिक फिटनेस की एक प्राचीन परंपरा के प्यार पर हुई थी।
ओलंपिक के छल्ले- पांच रंगों में पांच परस्पर जुड़े हुए छल्ले, बाएं से दाएं नीले, पीले, काले, हरे और लाल रंग के - शायद खेलों का सबसे प्रतिष्ठित प्रतीक हैं। लोगो को 1912 में आधुनिक खेलों के सह-संस्थापक बैरन पियरे डी कूपर्टिन द्वारा डिजाइन किया गया था। क्यूबर्टिन के अनुसार, छल्ले ओलंपिक चार्टर (खेलों के लिए दिशानिर्देश) में हाइलाइट किए गए मूल्यों का एक समूह, ओलंपिकवाद के लक्ष्यों से एक साथ बंधे हुए विश्व को भी दर्शाते हैं। ओलंपिज्म मन और शरीर की फिटनेस को प्रोत्साहित करता है, टीम वर्क को बढ़ावा देता है और मानवता की देखभाल करता है, और खेल और सभी प्रकार के लोगों को बिना किसी भेदभाव के भाग लेने और जीने का अधिकार देता है।
ओलंपिक ज्योति शांति, मित्रता, सहिष्णुता और आशा के  संदेश का प्रतीक है। 
यह प्राचीन और आधुनिक खेलों के बीच निरंतरता का भी प्रतीक है।


ओलंपिक मशाल रिले: "शांति, दोस्ती, सहिष्णुता और आशा का प्रतीक", 
1936 में मशाल रिले की परंपरा शुरू हुई, जिसमें ओलंपिया, ग्रीस में खेलों के मूल स्थान पर आग के बेसिन से एक मशाल जलाई जाती है और धावक इसे उस वर्ष के खेलों के मेजबान देश में एक प्रतीकात्मक दौड़ में ले जाते हैं अतीत से वर्तमान तक।
मेरे संग्रह से मेरे प्रांत हरियाणा से उत्पादित पुराने माचिस लेबल
 जिन पर धावक ओलंपिक मशाल के साथ तथा रिंग भी।


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कुछ पुराने ओलंपिक भारतीय माचिसों पर 

 मास्को 1980 ग्रीष्मकालीन ओलंपिक
आधिकारिक तौर पर XXII ओलंपियाड के खेलों के रूप में जाना जाता है


ओलंपिक मिश्का , 1980 के मास्को ओलंपिक खेलों (XXII ग्रीष्मकालीन ओलंपिक)
 के रूसी भालू शुभंकर का नाम है और यह शुभंकर भारतीय माचिस में काफी प्रचलित है.
कुछ मिश्का मेरे संग्रह से आपके आनन्द के लिये।










सियोल 1988 ग्रीष्मकालीन ओलंपिक
जिसे आधिकारिक तौर पर XXIV ओलंपियाड के खेलों के रूप में जाना जाता है 
Hodori - शुभंकर और प्रतीक चिन्ह, भारतीय माचिस पर, मेरे संग्रह से:


Tokyo 2020 ओलंपिक के प्रतीक चिन्ह
शायद भविष्य में भारत में इस ओलंपिक के प्रतीक चिन्ह पर भी कोई माचिस बने, 
अभी हमें, सब भारतियों को, अपनी टीम का उत्साह बढाना है। 
आनन्द लीजिए खेलों का और माचिसों का, फिर जल्दी और शेयर करता हूं


Friday, 16 July 2021

dkmx - 5

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माचिस संग्रहण यात्रा पार्ट 5 

जय हिन्द, पिछले ब्लाॅग में बात छोडी थी ब्राण्ड का प्रभाव माचिस डिजाइन पर,इस पर चर्चा करते हैं, चाहता तो मैं ये था की आप सब संग्रहक भी कोई टिप्पणी करोगे तो थोडी चर्चा होगी, मेरा भी कुछ ज्ञान बढ़ेगा, इस लिए मैंने चर्चा शब्द का प्रयोग किया। 
माचिस का डिजाईन आपको किसी ब्राण्ड की याद दिला जाये, यही मंशा दिखती है अप्रत्क्ष विज्ञापनकर्ता की, कभी कभी ब्राण्ड की पैरोडी भी दिखती है डिजाईन में। अपने संग्रह में कुछ माचिस जिन पर ये अच्छे से साफ साफ दिखाई दे रहा है कि माचिस को विज्ञापन के रूप में सफलता से प्रयोग किया गया है। उपर रिबन वाली फोटो देखें, होमलाईट की माचिस जो की विमको बनाती है, जो अपने आप में एक ब्राण्ड है, उसने अपने सारे डिजाईन स्पेस को विज्ञापन में प्रयोग किया। नीचे जो फोटो शेयर की है उस में आप देख सकते हैं कि लगभग जिन्दगी के हर पहलु के उत्पाद माचिस पर हैं। भविष्य में कुछ फोटोे और शेयर करूंगा। 


बड़ी मजेदार है यह ब्राण्ड वाली माचिसों की कैटेगरी, साबुन है, चाय है, सिग्ररेट बीड़ी है, गुटका है, पानी है, टीवी  है, टीवी चैनल है, सोशल मीडिया है यानि पूरा एक संसार है जिसमें जो कम्पनी का कोई प्रत्यक्ष रूप से कोई प्रभाव नजर नहीं आता।

जिस में ये तो दिखाई तो देता है की माचिस पर किसी कम्पनी का नाम या लोगो लगा है, पर ये नहीं लगता के यह माचिस उस कम्पनी ने बनवाई होगी। क्यों कि इस माचिस की उपलब्धता में कम्पनी सम्मिलित नहीं दिखती। ये माचिस दुकानदारों की मांग पर बनाई गई लगती है, किसी एक क्षेत्र के लिए, पर कालंतर में गुणवता व कुछ और व्यापरिक पक्षों के कारण ये बाकी क्षेत्रों में भी बिकने लगी। ऐसा मैं समझ पाया हूँ। 
मेरे संग्रह में लगभग 500 माचिस है इस कैटेगरी में और मैं इस कैटेगरी को काफी पसन्द भी करता हूँ, एक-दो  कैटेगरी इस कैटेगरी में से भी निकलती हैं जैसे वो माचिसें जिनका डिजाईन किसी माचिस के डिजाइन से प्रभावित होता है। जिनको हम माचिस कॅलक्टर की भाषा में लुक-अलाईक कहते हैं। जिसमें सबसे ज्यादा वैरायटी मिलती है होमलाईट,  ऐम और शिप यानि विमको/आईटीसी द्वारा बनाई गई माचिसों में, इसका भी अपना एक संसार है जिसमें संग्रहक स्मरणशक्ति की परिक्षा ज्यादा होती है। हर माचिस एक जैसी दिखाई देती है, जुडवां भाईयों में फर्क ढूढ़ने जैसा है, पर बहुत मजेदार है . अगले ब्लाॅग में कोशिश करता हूँ इस को दिखाने की ......


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Thursday, 15 July 2021

dkmx - 4

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माचिस संग्रहण यात्रा पार्ट 4 

जय हिन्द, बात करते हैं कैटेगरी की, किन माचिसों को एक साथ रखें कि वो देखने और दिखाने में अच्छी लगें, वो माचिस जिन में समानता हो। वैसे तो ये संग्रहक की इच्छा पर ज्यादा निर्भर करता है जैसे : फूल, फल, स्बजियां, कार, साईकल, जहाज, नाव इत्यादि। ये कुछ हैं, लगभग 50 कैटेगरी आराम से बन जाती है, एक ठीक ठाक कलैन्शन में। पर ये सब कुछ कैलेक्टर तब सोचने लगता है जब उसकी पहली कैटेगरी ओवरफलो होने लगती है, पहली कैटेगरी होती है - मिक्स - जिस में सब तरह की माचिस सम्मलित होती हैं। अभी बात सिर्फ सामने के डिजाइन की कर रहे हैं




कुछ माचिस शेयर कर रहा हुँ, जो बिल्कुल अकेली हैं, कोई साथी नहीं है इनका, मेरे संग्रह में।भारत वर्ष में लगभग 1893 से माचिस बन रही है, डिजाईनर 200 से ज्यादा सालों से डिजाईन बना रहे हैं, लगभग 80 प्रतिशत डिजाईन किसी पुरानी माचिस के प्रभाव में बनते हैं, कुछ अकेले भी होते हैं। यह भी एक अनोखी कैटेगरी है जिसे संग्रहक व दर्शक सबसे ज्यादा आनन्द से देखते हैं।

डिजाइन की दुनिया भी निराली है, नियम हैं, विज्ञापन देने वालों का प्रभाव भी है, विज्ञापन में दिखाये जाने वाले उत्पादों को अप्रत्क्षय रूप से दिखाने जाने का चलन भी काफी पुराना है, माचिसों पर ज्यादा प्रभाव तम्बाकू के उत्पादों का है, जैसे बीड़ी, गुटका इत्यादि। बीड़ी के बण्डल के साथ नियमित रूप से माचिस आज भी बिकती है। बण्डल खत्म हो जाता है, माचिस बच जाती है, उस पर छपी फोटो बीड़ी के ब्राण्ड की याद दिलती रहती है। अगले ब्लाॅग में कोशिश करूंगा की प्रत्यक्ष रूप में छपे उत्पादों को आपके साथ शेयर करूं।

आप से अनुरोध है कि अपने संग्रह से इस कैटेगरी की, जो की अनोखी हो माचिस, की फोटो अवश्य शेयर करेें, ताकि बाकी सब का ज्ञानवर्धन हो तथा देखने का आनन्द भी प्राप्त हो।

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Wednesday, 14 July 2021

dkmx - 3

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माचिस संग्रहण यात्रा पार्ट 3 

अब माचिस, जो बचपन में एकत्र की थी, वो थी, लिफाफे अलग - अलग, कैटेगीरी के हिसाब से, पर जो नहीं था, वो था डुपिलीकेट स्टाॅक, जिस से जल्दी जल्दी पैकेट एक्सचेंज किया जा सके और एक परेशानी थी माचिस को प्रर्दशित कैसे करें। कोई बताने वाला नहीं था, जैसा मन किया, वैसा रख लिया। बचपन में शुरूआत हुई लकड़ी की माचिस से। पहले उन्हें पानी में डुबाओ फिर लेबल उतारो, सुखाओ, उसमें एक समस्या थी के डुबाने के कारण कागज का नीला रंग लेबल पर चढ़ जाता था और कभी कभी गोंद की एक सफेद परत भी लेबल पर आ जाती थी, पर लेबल उतार कर काॅपी या स्कैच बुक या स्टाॅप एलबम में रखने की धुन सवार थी। अब सोच सोच कर अपनी अक्ल पर रोना भी आता है हंसी भी आती है। राम जाने, कितनी माचिसें अपने हाथों से तोड़ कर, लेबल उताारे। तब, उस जमाने में, कोई नहीं था देखने वाला, बताने वाला, तब गुंगे के गुड़ खाने वाली फींलिग आती थी, ना किसी को बता सकते  हैं आनंद की अनुभूति की,  पर आसपास के दोस्तों को तो प्रभावित कर ही लेते हो आप । तो दो दोस्तों ने शुरू किया,  कुछ दिन सब ठीक ठाक चला, फिर एक मित्र की छित्तर परेड़ हुई, हम भी दुबके रहे कुछ महीने। 

फिर काॅलेज के नोटिस बोर्ड पर एक पत्र लगाया गया, किसी राजीव का, इलाहबाद से, उसने अनुरोध किया था कि मेरे साथ माचिस एक्सचेंज करो। खुश हो गये, पत्र में 10 लेबल भेजे, वापिस भी मिले। इस तरह से पहला एक्सचेंज किया। राजीव भाई ने जो भेजा, लकड़ी का टाॅप ही भेजा, फिर हमने भी वैसे ही रखनी शुरू कर दी। कैमरा नहीं था, पर वो पत्र इनलैण्ड लेटर था नीला वाला, गजब की सुन्दर लिखाई थी, आज भी याद है, वरना फोटो आप के साथ शेयर करता।  

कार्डबोर्ड वाली माचिस भी चलन में आ गई थी उन दिनों तक। उन्हें मैंने नहीं फाड़ा, पूरा ही रखा, पता नहीं क्यों ये गलती मेरे से क्यों नहीं हुई। बडे लिफाफे में छोटे लिफाफे और रबड़ बैण्ड से बन्धे ग्रुप और कैटेगरी। फिर बार बार रबड बैण्ड लगे बण्डल खोलने और बन्द करते वक्त कुछ माचिस लेबल खराब होने लगे, तो उन पर पारदर्शी छोटी पन्नी चढ़ाने लगा। कुछ समय तक स्क्रैच बुक का भी प्रयोग किया, पर मजा नहीं आया। छोटे शहर में रहने के ये ही मजे हैं, माचिस भरपूर हैं, बाकी सामान सिर्फ वो ही जो गारण्टी से बिक सके। कुछ ज्यादा नहीं मिलता था और आज तो आनलाईन का जमाना है, लोकल बाजार की निरर्भता जरा कम हो गई है।

तब दो चार मित्र थे जो माचिस संग्रह करते थे, छोड़ गये, एक दो ने तो सारा कलैक्शन मुझे गिफ्ट कर दिया। नई माचिस बाजार में, कहीं बाहर, कभी कभार ही मिलती थी। पर मैं भूला नहीं  कि मैं माचिस एकत्र करता हूँ। जैसा पहले बताया फिर सोशल मीडिया ने इस को वापिस जीवित किया। फेसबुक पर मिले एक सज्जन ने मेरे को, 20 पाॅकेट वाली पारदर्शी शीट से अवगत करवाया। तब से आज तक सारी काॅलेक्शन इन्हीं शीटों में रखी है। प्रर्दशित करने के लिये या स्वयं देखने के लिए, मुझे ये सब से बढ़िया लगी। 


उस समय का, जो बीत गया, जिसमें माचिस नहीं एकत्र की, किसी और से नहीं एक्सचेंज नहीं किया, बहुत दुःख होता है। पर मैनें अपने सब दोस्तों से निवेदन हमेशा किया के मुझ गरीब कैल्कटर को याद रखना, कोई माचिस मिले तो ले आना। लाये भी, तब भी, आज भी, उनका ये ऋण हमेशा रहेगा मुझ पर। मित्र हमेशा लाजवाब होते हैं।  
फिर एक समय ऐसा आया माचिस मिलने लगी, एक्सचेंज में, दोस्तों से, बाजार से भी, तब एक विचार आता था के यह माचिस बहुत सुन्दर है, यह तो साधारण है, यह तो उस ब्राण्ड से प्ररित है, यह तो है पर इसकी साईड पट्टी अलग है, इस पर जो सिक्का छपा है उसका साल अलग  है और भी कितनी भिन्नताएं, जिस से आप उसे अपने संग्रह में ना रखें सिर्फ उन्हें ही रखें जो आपके मन का भाए। पर मैंने मन को मार दिया और सिर्फ एक नियम के अन्तर्गत संग्रह किया माचिस अलग हो, चाहे किसी भी गुण की वजह से हो। आज भी ये ही नियम है। सब माचिस सुन्दर हैं, सब एकत्र करने योग्य हैं।
अगली बार बात करेंगे की कैटेगरी कितनी बनाएं और मैंने क्या किया। हमारे देश में माचिसों की भरमार है, इसलिए मैंने सिर्फ भारतीय माचिसों को एकत्र करने का सोचा, इतना ही हो सके तो बहुत। कुछ विदेशी माचिस भी हैं संग्रह में पर वो बस मिल गई, इच्छा नहीं की कभी उनकी। भारतीय माचिस हमेशा ज्यादा दिलखुश करती हैं। यह मैंने पहली कैटेगरी बनाई,  भारतीय माचिस। बाकी अगली बार। धन्यवाद। 

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Tuesday, 13 July 2021

dkmx - 2

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माचिस संग्रहण यात्रा पार्ट 2

धीरे धीरे माचिस संग्रहण की समझ बढ़ने लगी, सब लोग मेरे से सीनियर थे, मैं उनको मिला था सोशल मिडिया पर, वो पहले से थे, बहुत सिखाया उन सब ने, या यूं कहें की देख देख के सीख गया, कुछ विदेशी भी थे, जिन्होने मेरी फ्रेड रिक्वेस्ट स्वीकार की, बहुत अच्छा लगा। फिर एक समय ये हो गया, जो आजतक होता है कि अगर लोकल कोई नई माचिस मिली, सिर्फ एक, तो दुःख ज्यादा हुआ, खुशी कम, काश और मिलती तो सबके संग्रह में जाती। 

पहली बात यह समझ में आई के सब के लिये लो, माचिस ही तो है। फिर शहर में कितनी माचिस हैं ये ज्ञान भी मिला साथ में यह भी पता चला कुछ माचिस कम्पनियों को छोड़ कर बाकी सब माचिस कम्पनियां, कुछ समय यानि लगभग 3 से 6 महिनों में डिजाईन में बदलाव कर देती है, जो होता तो हल्का सा है पर हम क्लैक्टरों के लिये नया सा ही होता है। तो संग्रह ना बढ़ने के तनाव से आप हमेशा मुक्त रहते हैं क्योंकि आपको आपका लोकल बाजार ही काफी माचिस प्रदान कर देता है। आगे का डिजाईन एक जैसा है पर पीछे का डिजाईन अलग है, कभी आपको साईड वाली पट्टी अलग मिलती है, कभी आपको फैक्टरी का नाम अलग मिलता है, कभी आपको माचिस की तिल्लीयों की संख्या में अंतर मिलता है, कभी पैसों में अंतर, तो तात्पर्य यह है की आपके पास खुश होने के काफी सारे कारण हैं और खुशी नई माचिस मिलने की भरपूर है और शुरू में तो आप ये नई माचिस पाने की खुशी सड़क से ही प्राप्त कर सकते है। कुछ सालों पहले तक मैं भी ये खुशी रोज प्राप्त करता था पर अब सब बदल गया है ये खुशी लगभग बन्द हो गई है आजकल। वक्त ही कुछ ऐसा है।

 मेरे को एक बात और समझ में आई, जो हर संग्रहक को याद रखनी है के जैसे मैं हरियाणा राज्य के एक छोटे से प्रान्त हिसार में रहता हूँ, मेरे प्रान्त में लगभग 160 गांव है और हर लगभग हर तीसरे गांव में कम से कम 3 तरह की माचिस उपलब्ध हैं, तो जरा करो गिनती और 3 से 6 मास में नया डिजाईन, हो गई ना बल्ले बल्ले। काश ऐसा होता भारत वर्ष के 718 प्रान्तों में माचिस संग्रहक होते, उनका सोशल मीडिया में ग्रुप होता, तो हर एक के पास लाखों माचिसें होती, ऐसा सपना मैं रोज देखता हूँ।याद रखने वाली बात यह है कि हमारे भारत वर्ष में लगभग 6.6 लाख गांव है।  

नक्शे में दिखाई देते हर नाम से 20 माचिस हर 6 महिने में फिर से, यह निरंतर खुशी एक माचिस संग्रहक को मिलती रहती है और मिलती रहेगी। नक्शे पर क्लिक कर के देखें मेरे संग्रह में हरियाणा के प्रान्तों में प्रचलित कुछ माचिस ब्राण्ड जिन पर हरियाणा राज्य या उसके प्रान्त के नाम का उल्लेख है। कुल जमा बात समझने वाली इतनी ही है कि आप अपनी इस हाॅबी को अपने शहर में ही बढ़ा सकते हैं, काफी सारी माचिस आपको शहर में ही मिल जायेगीं और फिर आपके पास सोशल मीडिया तो है ही। लगभग 6 साल पहले(4 april 2015) को  मैंने ये ग्रुप DKMX बनाया और फिर शुरू हुआ फोटो शेयर करने का दौर, पहले कुछ फोटो अपने संग्रह से शेयर की और कुछ वो शेयर की जो एक्सचेंज के लिये उपलब्ध थी, सिलसिला चल निकला, जो आजतक निरंतर चल रहा है। 

ग्रुप की और बातें अगले ब्लाॅग में करता हूँ, अभी के लिये इतना ही। 

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माचिस संग्रहण यात्रा

माचिसों से मेरा काफी सालों से नाता है और अब तो माचिस जैसे जिन्दगी का एक हिस्सा ही बन गई है। काॅलेज के जमाने से इन्हें एकत्रित करने की लत मुझे लग गई थी और तब से ही मैं आज तक उसी उत्साह के साथ लगा हुआ हुं। उस जमाने में कुछ  दोस्त थे, अपने शहर के, जो मेरे साथ थे इस संग्रह में, शायद एक या दो पत्रमित्र भी थे। पढाई के बाद लगभग माचिस संग्रह बन्द सा हो गया था पर फेंका नहीं, कहीं कोने में संभला रहा। 

फिर आया जिन्दगी में ओरकुट (orkut) और सोशल मीडिया का पहला दौर शुरू हुआ देश में, मैं भी पहुंचा, नेट स्पीड धीरे थी, पर थी, मोबाईल कैमरे नहीं थे, पर स्कैनर थे कम्पूयटर के साथ। फोटो शेयर होनी शुरू हो चुकी थी। पहली बार वहां पर से शुरू हुआ, मेरा माचिसों का एक्सचेंज।  वो लिफाफे जिन में पहली बार माचिस आई थीं, वो भी आजतक सम्भाले हुए हुँ, बडी रोमांटिक वेल्यु है उनकी। इस तरह से सिलसिला चल निकला। धीरे-धीरे, कुछ सालों में ये पहुंच गया, फेसबुक पर। वहां से माचिस संग्रहण को कुछ रफ्तार मिली, काफी नये संग्रहक मिले, फेसबुक का मंच की इतना विशाल है, आज लगभग मैं 200 लोगों से माचिस एक्सचेंज कर चुका हूँ। 
जैसा उपर शुरू में लिखा,  आज एक group है फेसबुक पर, यहां पर  सारा दिन माचिसों का खेल होता है ईन्सटाग्राम व फेसबुक पर भी नई मिलने वाली माचिस की फोटो शेयर करना एक आदत हो गई है। अगर आप भी एक माचिस संग्रहक हैं या बनना चाहते हैं तो आइये group  ज्वाइन कीजिए, निश्चित ही आपको खुशी होगी, जो सबसे जरूरी है, मित्र मिलेंगे, माचिस भी साथ में। थोडा समय निकालिये, माचिसों के  आनन्द  के लिये। #dkmx, #devskool मेरे हैशटैग है, ये मेरे नये जमाने के नाम है, इन्हें गुगल कर के भी आप मेरे माचिस संग्रह का अवलोकन कर सकते हैं। 


आपकी सुविधा के लिये, कुछ लिंक शेयर कर रहा हूं
जो आपको जानकार बनायेगें, माचिस संग्रहण बारे में, 
आजकल सारा ज्ञान पहले से ही इटरनेट पर उपलब्ध है। 
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मेरा सुझाव :
संग्रह करने के कई नियम आपको मिलेगें, पर आपको सिर्फ अपने दिल की सुननी है। जैसा आपको अच्छा लगे, जो आपको अच्छा लगे, वो ही सही है। आप अपने संग्रह के सबसे पहले दर्शक व प्रशंसक हैं, इसलिये स्वयं नियम बनाईये और उन पर अडिग रहिये, क्यों की आपको अपना संग्रह बहुत अच्छा लगना चाहिये। ऐसा मेरा विचार है एवं ऐसा ही मैं कर रहा हूं।



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मेरी इस माचिस संग्रह यात्रा की कुछ और बातें जल्दी शेयर करूंगा। आज के लिये इतना ही। 






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