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माचिस संग्रहण यात्रा पार्ट 4
जय हिन्द, बात करते हैं कैटेगरी की, किन माचिसों को एक साथ रखें कि वो देखने और दिखाने में अच्छी लगें, वो माचिस जिन में समानता हो। वैसे तो ये संग्रहक की इच्छा पर ज्यादा निर्भर करता है जैसे : फूल, फल, स्बजियां, कार, साईकल, जहाज, नाव इत्यादि। ये कुछ हैं, लगभग 50 कैटेगरी आराम से बन जाती है, एक ठीक ठाक कलैन्शन में। पर ये सब कुछ कैलेक्टर तब सोचने लगता है जब उसकी पहली कैटेगरी ओवरफलो होने लगती है, पहली कैटेगरी होती है - मिक्स - जिस में सब तरह की माचिस सम्मलित होती हैं। अभी बात सिर्फ सामने के डिजाइन की कर रहे हैं ।
कुछ माचिस शेयर कर रहा हुँ, जो बिल्कुल अकेली हैं, कोई साथी नहीं है इनका, मेरे संग्रह में।भारत वर्ष में लगभग 1893 से माचिस बन रही है, डिजाईनर 200 से ज्यादा सालों से डिजाईन बना रहे हैं, लगभग 80 प्रतिशत डिजाईन किसी पुरानी माचिस के प्रभाव में बनते हैं, कुछ अकेले भी होते हैं। यह भी एक अनोखी कैटेगरी है जिसे संग्रहक व दर्शक सबसे ज्यादा आनन्द से देखते हैं।
डिजाइन की दुनिया भी निराली है, नियम हैं, विज्ञापन देने वालों का प्रभाव भी है, विज्ञापन में दिखाये जाने वाले उत्पादों को अप्रत्क्षय रूप से दिखाने जाने का चलन भी काफी पुराना है, माचिसों पर ज्यादा प्रभाव तम्बाकू के उत्पादों का है, जैसे बीड़ी, गुटका इत्यादि। बीड़ी के बण्डल के साथ नियमित रूप से माचिस आज भी बिकती है। बण्डल खत्म हो जाता है, माचिस बच जाती है, उस पर छपी फोटो बीड़ी के ब्राण्ड की याद दिलती रहती है। अगले ब्लाॅग में कोशिश करूंगा की प्रत्यक्ष रूप में छपे उत्पादों को आपके साथ शेयर करूं।
आप से अनुरोध है कि अपने संग्रह से इस कैटेगरी की, जो की अनोखी हो माचिस, की फोटो अवश्य शेयर करेें, ताकि बाकी सब का ज्ञानवर्धन हो तथा देखने का आनन्द भी प्राप्त हो।
Super sir ji
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